Shri Ram Mandir: नई दिल्ली, 11 जनवरी 2024: भारतीय समाज में हिंदू धर्म के आध्यात्मिक नेतृत्व का महत्वपूर्ण हिस्सा शंकराचार्यों को सौंपा गया है। इन आध्यात्मिक गुरुओं की अद्भुत शिक्षाएं और मार्गदर्शन से ही हिंदू समाज अपनी धारा बनाए रखता है। हाल ही में हुए श्री राम मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा समारोह में शंकराचार्यों के अभाव का समाचार एक हिंदूत्व समर्थक पोर्टल द्वारा आता है, जिसने इसे “एक मक़बरा” बताया है।
इस पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार, शंकराचार्यों में से कुछ ने अयोध्या में होने वाले प्रस्तावित अभिषेक समारोह का सामर्थ्य से इनकार किया है। उनका तर्क है कि सरकार का प्रयास एक “पवित्र मंदिर” के निर्माण पर केंद्रित नहीं है, बल्कि उनके शब्दों में, “एक समाधि” के निर्माण पर केंद्रित है। इससे उन्होंने धारणा को सुझाते हुए कहा कि इस परियोजना में “पारंपरिक मंदिर निर्माण” में निहित पवित्रता और श्रद्धा का अभाव है।
उपरोक्त रिपोर्ट से यह सामने आता है कि कुछ शंकराचार्यों ने राम मंदिर के निर्माण प्रक्रिया को लेकर अपने विचार व्यक्त किए हैं और उन्होंने इसे राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू भावनाओं का शोषण बताया है। इसके अलावा, उन्होंने सरकार पर दोहरे चरित्र का आरोप लगाया है और कहा है कि सरकार धार्मिक समुदाय के समग्र कल्याण के प्रति व्यापक संदेह को दर्शाती है।
इस पूरे मामले में यह भी स्पष्ट होता है कि कुछ शंकराचार्य एक स्वतंत्र और नैतिक धारणा को अपनाने का प्रयास कर रहे हैं, जो “कुटिल” राजनीतिक हस्तियों के प्रभाव से मुक्त हैं। उनका तर्क है कि वे राम मंदिर के निर्माण के लिए समर्पित हैं, लेकिन वे इस प्रक्रिया में राजनीतिक और आर्थिक उदारीकरण के खिलाफ हैं।
इस रिपोर्ट के माध्यम से हम देखते हैं कि शंकराचार्यों का यह निर्णय समाज में विभिन्न प्रतिधारित धाराओं के बीच में एक बहुपक्षीय बहस को उत्तेजित कर सकता है। इसमें धार्मिकता, नैतिकता, और राजनीतिक दृष्टिकोण से जुड़े मुद्दे शामिल होते हैं, जो समाज को एक सांघिक और सहमत माध्यम में ले सकते हैं।
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